शब्द का अर्थ
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धृत :
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वि० [सं०√धृ (धारण)+क्त] १. हाथ से धरा या पकड़ा हुआ। २. गिरफ्तार किया हुआ। ३. धारण किया हुआ। ४. निश्चित या स्थिर किया हुआ। ५. पतित। पुं० १. ग्रहण या धारण करने का भाव। २. कुश्ती लड़ने का एक ढंग। ३. तेरहवें मनु रौच्य के पुत्र का नाम। ४. पुराणानुसार द्रुह्य-वंशीय धर्म का एक पुत्र। |
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धृतकेतु :
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पुं० [सं०] वसुदेव के बहनोई का नाम। (गर्ग संहिता) |
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धृत-दंड :
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वि० [ब० स०] १. जिसे दंड मिला है। दंडित। २. दंड देनेवाला। |
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धृतदेवा :
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स्त्री० [सं०] देवक की एक कन्या। |
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धृतमाली :
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पुं० [सं०] अस्त्रों को निष्फल करनेवाला एक प्रकार का अस्त्र। अस्त्रों का एक संहार। (रामायण) |
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धृत-राष्ट्र :
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पुं० [ब० स०] १. ऐसा देश जिसे कोई अच्छा और योग्य राजा धारण करता अर्थात अपने शासन में रखता है। २. ऐसा राजा जिसका राज्य और शासन दृढ़ हो; अर्थात जो देश को पूर्णतः अपने अधिकार या वश में रखता हो। ३. महाभारत काल के एक प्रसिद्ध राजा, जो विचित्रवीर्य के पुत्र और दुर्योधन के पिता थे। ये अन्धे थे। ४. एक नाग का नाम। ५. बौद्धों के अनुसार एक गंधर्व राजा। ६. जनमेजय के एक पुत्र। ७. एक प्रकार का हंस, जिसकी चोंच और पैर काले होते हैं। |
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धृतराष्ट्री :
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स्त्री० [सं० धृतराष्ट्र+ङीष्] १. कश्यप ऋषि की पत्नी ताम्रा से उत्पन्न 5 कन्याओं में से एक, जो हंसों की आदि माता थी। २. धृतराष्ट्र की पत्नी। |
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धृत-वर्मा (र्मन्) :
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वि० [ब० स०] जिसने वर्म अर्थात् कवच धारण किया हो। पुं० त्रिगर्त्त का राजकुमार, जिसके साथ अर्जुन को उस समय युद्ध करना पड़ा था जब वे अश्वमेध के घोड़े की रक्षा के लिए उसके साथ गये थे। |
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धृत-विकय :
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पुं० [मध्य० स०] तौलकर चीजें बेचने का ढंग या प्रकार (कौ०) |
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धृतव्रत :
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वि० [ब० स०] जिसने कोई व्रत धारण किया हो। पुं० पुरुवेशीय जयद्रथ के पुत्र विजय का पौत्र। |
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धृतात्मा (त्मन्) :
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वि० [धृत-आत्मन् ब० स०] १. जो अपनी आत्मा या मन को अच्छी तरह वश में और स्थिर रखता है। २. धीर। पुं० विष्णु। |
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धृति :
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स्त्री० [सं०√धृ+क्तितन्] १. धारण करने की क्रिया या भाव। २. धारण करने का गुण या शक्ति। धारणा-शक्ति। ३. चित्त या मन की अविचलता, दृढ़ता या स्थिरता। ४. धीर होने की अवस्था या भाव। धैर्य। ५. साहित्य में, एक संचारी भाव जिसमें इष्टप्राप्ति के कारण इच्छाओं की पूर्ति होती है। ६. दक्ष की एक कन्या, जो धर्म की पत्नी थी। ७. अश्वमेध की एक आहुति। ८. सोलह मातृकाओं में से एक। ९. अठारह अक्षरोंवाले वृत्तों की संज्ञा। १॰.. चंद्रमा की सोलह कलाओं में से एक कला का नाम। ११. फलित ज्योतिष में, एक प्रकार का योग। पुं० १. जयद्रथ राज के पौत्र का नाम। २. एक विश्वेदेव का नाम। ३. यदुवंशी वभ्र का पुत्र। |
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धृतिमान (मत्) :
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वि० [सं० धृति+मतुप्][स्त्री०]धृतिमती १. धैर्यवान् २. तुष्ट। तप्त। |
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धृत्वरी :
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स्त्री० [सं०√धृ+क्वनिप्+ङीप्, र आदेश] पृथ्वी। |
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धृत्वा (त्वन्) :
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पुं० [सं०√धृ+क्वनिप्] १. विष्णु। २. ब्रह्मा। ३. धर्म। ४. आकाश। ५. समुद्र। ६. चतुर आदमी। |
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